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4)खिड़की ( यादों के झरोके से )




शीर्षक = खिड़की ( यादों के झरोके से )




आज फिर अपनी यादों के संदूक में बंद पड़ी कुछ याद गार यादों को आप सबके समक्ष रखने का एक छोटा सा प्रयास करने जा रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ आपको मेरे द्वारा साँझा किया गया संस्मरण पसंद आएगा 


तो आइये चलते है, कुछ साल पहले  यानी की मेरे बचपन के दिनों में और सरल भाषा में कहे तो सुनहरे दौर की झलकियों में, जब कांधे पर ज़िम्मेदारियों का नही किताबों का बोझ होता था  और चिंता होती थी तो सिर्फ इस बात की कि बस किसी भी तरह शक्तिमान  का एपिसोड देखने को मिल जाए ताकि दोस्तों के साथ उसे स्कूल में साँझा करने में हम पीछे ना रह जाए


ना कल कि फ़िक्र थी और ना आज कि चिंता , न खाने कि परवाह और न ही पहनने औड़ने का तमीज बस  दो जोड़ी कपड़ो में पूरा गांव घूम लेते थे  और उस पर माँ का वो लाड़ प्यार, बालों में सरसों का तेल और आड़ी मांग निकाल कर स्कूल भेजना  नाश्ता कराने के बाद भी  याद से टिफिन देना कि कही हम भूखे न रह जाए


वो दिन भर स्कूल में मस्ती फिर घर आकर गली मोहल्ले के बच्चों के साथ खेल कूद कि मस्ती, वो तीन किताबें हिंदी, इंग्लिश और गणित  की उन्ही को पढ़ना  सच में हमारा बचपन बहुत प्यारा था , न बेर था किसी से और न ही छल कपट की भावना थी हमारे अंदर  जरा सी डांट पर रो देना और प्यार भरी पुचकार से मान भी जाना कितना आसान था न  रूठो को मनाना


बचपन की बाते लिखते लिखते तो कॉपी कलम कम पड़ जाए पर शायद बचपन के उस सुनहरे दौर का एक एक लम्हा जो अब यादें बन चूका है  वो कभी कम नही पड़ेगी  तो आइये ऐसे ही एक लम्हें को आप सबके साथ साँझा करने जा रहा हूँ



खिड़की , जिसका मुख्य कार्य कमरे में ताज़ा हवा  को भेजना, कमरे में उजाला करना होता है  और साथ ही साथ  बाहर की गतिविधि को भी खिड़की से देखा जा सकता है


लेकिन मैं एक ऐसी खिड़की की बात करने जा रहा हूँ, जो की खिड़की होने के नाते अपने कार्य को तो अंजाम देती थी  लेकिन उसके साथ साथ वो दो घरों के लिए एक रास्ते का भी काम करती थी 


उसे दरवाज़ा इसलिए नही कहा गया  क्यूंकि उसका आकार खिड़की जैसा था  और वो दो घरों के बीच लगी हुयी थी , वो घर किसी और का नही बल्कि हमारा ही था और जिस घर में वो खिड़की खुलती थी वो कोई हमारे रिश्तेदार नही बल्कि पडोसी थे 


जहाँ आजकल लोग इतना बदल गए है  की अपने पडोसी को अपने घर के दरवाज़े के पास उसका दरवाज़ा नही बनाने देते है , उसके थोड़े बहुत गलती से फेके गए कचरे पर भी लड़ाई झगडे शुरू कर देते है 


वही उस समय वो खिड़की  दो घरों को जोड़ने का काम कर रही थी , उस खिड़की से इतनी यादें जुडी हुयी थी की जब उसे बंद किया गया तब हमारे घर वालों के साथ साथ पड़ोसियों के बच्चें भी रो रहे थे , उस खिड़की को बंद करने का मुख्य कारण  सिर्फ सिर्फ उस जगह पक्की दीवार बन कर एक कमरा बनाना था 

उस खिड़की की बदौलत हमें अपने पड़ोस के घर टीवी देखने जाने में भी कोई परेशानी नही होती थी उसी के साथ साथ  उनके घर जाने वाले मेहमान भी हमारे घर आकर उनके घर जाते थे , इसी बहाने हमारे घर भी मेहमानों का आना जाना लगा रहता था


सच में जब तक वो खिड़की खुली रही जब तक हमारे पडोसी और हमारे बीच के रिश्ते की भी खिड़की खुली रही , कभी भी किसी भी समय हम उनके घर और वो हमारे घर आ जाते थे  लेकिन जब वो बंद हो गयी तो धीरे धीरे  आना जाना भी कम होता गया , ऐसा नही की बिलकुल बंद हो गया  बस पहले जैसा मजा नही आता था , जब तो एक पैर हमारे घर होता था और दूसरा हमारे पडोसी के घर  खाने का भी आदान प्रदान बहुत आसानी से हो जाता, किस घर में क्या बन रहा है  दोनों को मालूम होता था , सच में वो खिड़की बहुत याद आती है  बचपन की बहुत सी खट्टी मीठी यादें उस खिड़की के साथ जुडी हुयी है जिन्हे लफ्ज़ो में बयान कर पाना आसान नही


ऐसे ही अपनी यादों के संदूक से कुछ यादों को आपके समक्ष रखने का प्रयास करूंगा  जब जब समय मिलता रहेगा  तब तक के लिए अलविदा जहाँ भी रहे खुश रहे और कोशिश करते रहे हर गुज़रते लम्हें को जीने की ताकि वो आगे चल कर एक खूबसूरत याद बन सके 


यादों के झरोके से 

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4 Comments

Raziya bano

07-Dec-2022 10:25 AM

Nice

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Sachin dev

06-Dec-2022 06:05 PM

Superb 👌

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Peehu saini

06-Dec-2022 05:54 PM

Anupam 🌸👏

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